दत्तात्रेय जयंती कब और क्यों मनाई जाती है? Dattatreya Jayanti कथा

Dattatreya Jayanti कब और क्यों मनाई जाती है? इस datta jayanti के मनाने का उद्देश्य, इस दत्तात्रेय जयंती का मुख्य पौराणिक कथा क्या है? आप इस आर्टिकल में जानने वाले हैं चलिए जानते हैं, अनुसूया माता से रिलेटेड दत्तात्रेय जयंती कथा विस्तार से,

दत्तात्रेय जयंती कब और क्यों मनाई जाती है? Dattatreya Jayanti कथा
Dattatreya Jayanti

दत्तात्रेय जयन्ती (Dattatreya Jayanti) : मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की दशमी को दत्तात्रेय जयन्ती मनाई जाती है। पुराणों के अनुसार dattatreya के तीन सिर व छः भुजाएँ थीं। ये त्रिदेवों के अंश माने जाते हैं। दत्तात्रेय अपनी बहुज्ञता के कारण पौराणिक इतिहास में विख्यात हैं। इनके जन्म की कथा बड़ी विचित्र है।

Dattatreya jayanti कथा:

एक बार नारद मुनि, भगवान शंकर, विष्णु और ब्रह्माजी से मिलने स्वर्ग लोक गये। परन्तु उनकी भेंट त्रिदेवों में से किसी से न हो सकी। उनकी भेंट त्रिदेवों की पत्नियों पार्वती, लक्ष्मी एवं सरस्वती (Parvati, Lakshmi and Saraswati) जी से हो गई। नारदजी ने तीनों का घमण्ड तोड़ने के लिए कहा कि मैं विश्वभर का भ्रमण करता रहता हूँ।

परन्तु अत्रि ऋषि की पत्नी अनुसूइया (Mata Anusuiya) के समान पतिव्रत धर्मवाली, शील एवं सद्गुण सम्पन्न स्त्री मैंने नहीं देखी। आप तीनों देवियाँ भी पतिव्रत धर्म पालन में उनसे पीछे हैं। यह सुनकर उनके अहम् को बड़ी ठेस लगी। क्योंकि वे समझती थीं कि हमारे समान पतिव्रता स्त्री Sansar नारदजी के चले जाने के बाद तीनों देवियों ने अपने-अपने देवों से सती अनुसूइया का पतिव्रत धर्म नष्ट करने का आग्रह किया।

संयोगवश त्रिदेव एक ही समय अत्रि मुनि के आश्रम पर पहुँचे। तीनों देवों (Tirdev) का एक ही उद्देश्य था। Mata Anusuiya का पति-धर्म नष्ट करना। तीनों ने मिलकर योजना बना डाली। तीनों देवों ने ऋषियों का वेष धारण कर अनुसूइया से भिक्षा माँगी। भिक्षा में उन्होंने भोजन करने की इच्छा प्रकट की।

Mata Anusuiya Katha

अतिथि सत्कार को अपना धर्म समझने वाली Mata Anusuiya ने कहा आप स्नान आदि से निवृत्त होकर आइए तब तक मैं आपके लिए रसोई तैयार करती हूँ। तीनों देव स्नान करके आए तो अनुसूइया ने उन्हें आसन ग्रहण करने को कहा। इस पर तीनों देव बोले हम तभी आसन ग्रहण कर सकते हैं जब प्राकृतिक अवस्था में बिना कपड़ों के हमें भोजन कराओगी।

अनुसूइया के तन बदन में आग लग गई परन्तु पतिव्रत धर्म के कारण वह त्रिदेवों की चाल समझ गईं। Anusuiya ने अत्रि ऋषि के चरणोदक को त्रिदेवों के ऊपर छिड़क दिया। इससे त्रिदेव छोटे-छोटे बालकों के रूप में बदल गए। तब सबको उनकी शर्त के मुताबिक अनुसूइया ने भोजन कराया तथा पालने पर अलग-अलग उन्हें झुलाने लगीं।

काफी समय बीत जाने पर भी जब त्रिदेव नहीं लौटे तो त्रिदेवियों को चिन्ता होने लगी। त्रिदेवियाँ त्रिदेवों को खोजती हुई अत्रि ऋषि के आश्रम में पहुँची और sati Anusuiya से त्रिदेवों के बारे में जानकारी करने लगीं। अनुसूइया ने पालनों की ओर इंगित करके कहा कि तुम्हारे देव पालनों में आराम कर रहे हैं।

अनुसूइया ने कहा:

अपने-अपने देव को पहचान लो परन्तु तीनों के-के चेहरे एक से होने के कारण वे न पहचान सकीं। Lakshmi ji ने बहुत चालाकी से विष्णु को पालने से उठाया तो वे शंकर निकले, उस पर उनको बड़ा उपहास सहना पड़ा। तीनों देवियों के अनुनय विनय करने पर अनुसूइया ने कहा कि इन तीनों ने मेरा दूध पिया है।

इसलिए इन्हें किसी न किसी रूप में मेरे पास रहना होगा। इस पर त्रिदेवों के अंश से एक विशिष्ट बालक का जन्म हुआ जिसके तीन सिर तथा छ: भुजाएँ थीं। यही बालक बड़ा होकर दत्तात्रेय (Dattatreya) ऋषि कहलाए। अनुसूइया ने पुनः पति चरणोदक से त्रिदेवों को पूर्ववत कर दिया।

दत्तात्रेय जयंती कब है?

बताना चाहते हैं कि 2022 में Dattatreya Jayanti, 7 दिसम्बर दिन बुधवार को है।

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