Manu Ke Anusar कानून और न्याय व्यवस्था || मनु का योगदान

आपका स्वागत है दोस्तों, इस आर्टिकल के माध्यम से हम आपको बताने वाले हैं Manu Ke Anusar कानून एवं न्याय व्यवस्था के सिद्धांतों पर चर्चा करने वाले हैं। मनु के अनुसार कानून और न्याय व्यवस्था और मनु का योगदान एसे महत्त्वपूर्ण बातें आप इस आर्टिकल में पढ़ने वाले हैं। चलिए स्टार्ट करते हैं,

कानून और न्याय व्यवस्था (Manu Ke anusar Kanoon avm Niyam vyavastha)

विधि निर्माण का कार्य मनु ‘परिषद्’ को सौंपते हैं। परिषद् में वेदों के ज्ञाता और बुद्धिमान लोग होने चाहिए। मनु के अनुसार (Manu Ke Anusar) ‘परिषद्’ (विधायिका) के सदस्यों की संख्या दस होनी चाहिए। तीन व्यक्ति वेद के ज्ञाता, एक निर्वक्ता, एक मीमांसाकार, एक निरुक्त और एक धर्मशास्त्री तथा तीन व्यक्ति मुख्य व्यवसायी हों। परिषद् के अलावा जनता अपनी संस्थाओं द्वारा विधि निर्माण कर सकती थी। कुल, जाति, श्रेणी, जनपद, इसी प्रकार की संस्थाएँ थीं।

राजा इन संस्थाओं द्वारा निर्मित कानूनों को अपनी स्वीकृति देता है। मनुस्मृति (manuwadi) में न्यायपालिका का भी विचार किया गया है। शान्ति व्यवस्था स्थापित करने के लिए न्याय व्यवस्था आवश्यक है। व्यवहार से तात्पर्य उसी कार्य से है जिसके द्वारा अनेक प्रकार के संदेह दूर किए जाएँ। अपराधी कौन है? उसके अपराध का स्वरूप क्या है? उसकी मानसिक स्थिति क्या थी? उसे क्या दण्ड मिलना चाहिए? यह ‘व्यवहार’ निश्चित करता हैं।

न्याय व्यवस्था का संगठन (Nyay vyavastha ka Sangathan)

न्याय के लिए मनु; धर्म सभा की व्यवस्था करते हैं। राजा न्याय व्यवस्था का प्रमुख है। राजा की अनुपस्थिति में राजा द्वारा निर्देशित एक विद्वान ब्राह्मण प्रमुख हो सकता है। राजा अथवा उसकी ओर से विद्वान ब्राह्मण, तीन सभासदों की सहायता प्राप्त कर सकते हैं। सर्वोच्च न्यायालय ही धर्म सभा है। इस धर्म सभा के नीचे एक छोटी धर्म सभा होती थी, इसमें राजा की ओर से नियुक्त एक ब्राह्मण अधिकारी तथा तीन अन्य पण्डित होते थे।

Manuwadi में ‘प्रांड विचारक’ नामक अधिकारी की भी चर्चा की गई है। इस अधिकारी का मुख्य कार्य किसी विवाद से सम्बन्धित कागजातों को सुरक्षित रखना था। अधिकारी का यह भी कर्त्तव्य था कि वह विवाद से सम्बन्धित पूरी जानकारी रखे। सर्वोच्च न्यायालय के अतिरिक्त अन्य छोटे-छोटे न्यायालय भी होते थे। मनु ने अन्य न्यायालयों का भी विचार किया है जिनमें कुल (वंश) , श्रेणी (गण-जाति) और जनपद के न्यायालय प्रमुख हैं।

मनु (Manu) ने प्रमाणों को दो भागों में विभाजित किया है-एक मनुष्य प्रमाण और दूसरा दिव्य प्रमाण। मनुष्य प्रमाण अर्थात् मनुष्य द्वारा प्रस्तुत प्रमाण। ये तीन प्रकार के होते हैं-लिखित, युक्ति और साक्षी। इन तीनों में लिखित प्रमाण को सर्वाधिक महत्त्व दिया जाना चाहिए, पर यदि कोई लेखा, बलपूर्वक लिखाया गया हो तो उसे अस्वीकार करना चाहिए। साक्ष्य प्रमाण भी मान्य होने चाहिए, पर असत्य बोलने वाले सेवक, शत्रु, संन्यासी और कोढ़ी के कथनों का विश्वास नहीं किया जाना चाहिए। दिव्य प्रमाण, शपथ लेना या कठोर परीक्षाओं से सत्य-असत्य घोषित करना है। मनुस्मृति में कई प्रकार के विषयों का उल्लेख है। ये सभी विषय न्यायालय के क्षेत्राधिकार में आते हैं। ये विषय निम्नलिखित हैं1

मनुस्मृति में कई प्रकार के विषयों का उल्लेख (Manu vyavastha ke Prakar)

  1. ऋण लेकर मुकर जाना।
  2. धरोहर रखना।
  3. बिना स्वामी के किसी वस्तु या भूमि को बेच देना।
  4. व्यापार में साझेदारी।
  5. दिए हुए दान को वापिस लेना।
  6. वेतन या पारिश्रमिक न देना।
  7. पशु-स्वामी और पशु-पालन में विवाद।
  8. सीमा विवाद।
  9. क्रय-विक्रय सम्बन्धी विवाद।
  10. अनुचित शब्दों का प्रयोग
  11. चोरी करना।
  12. बहुत अधिक मारना-पीटना।
  13. डाका डालना।
  14. पर-स्त्री हरण।
  15. स्त्री-पुरुष के धर्म की व्यवस्था।
  16. पैतृक सम्पत्ति का बँटवारा
  17. जुआ खेलना।

Manu Ke anusar dand vyavastha (दण्ड-व्यवस्था)

मनु ने दण्ड-व्यवस्था में सुधारात्मक प्रतिशोधक तथा विरोधात्मक दण्ड सिद्धान्तों में समन्वय स्थापित किया है। अपराधी ने जिस अनुपात में अपराध किया है उसी अनुपात में उसे दण्ड मिलना चाहिए। एक बार दण्ड भोगने के बाद अपराधी पापमुक्त हो जाता है। अतः उसे दण्ड भोगने के बाद समाज में यथोचित स्थान मिलना चाहिए।

मनु के समय दण्ड वर्णव्यवस्थानुसार देने का प्रबन्ध था अर्थात् कुछ मामलों में उसी अनुपात के साथ शूद्र को अधिक दण्ड था, ब्राह्मण को कम दण्ड था। मनु ने विभिन्न प्रकार के दण्डों का विधान किया है। इनमें प्रमुख हैं-वाग्दण्ड (समझाना-बुझाना) , धिग्दण्ड (निन्दा-भर्त्सना करना) , धनदण्ड (जुर्माना) , कामदण्ड और बधदण्ड (शारीरिक यातना और प्राणदण्ड) , कारागार, जाति बहिष्कार, प्रायश्चित, सम्पत्तिहरण, निर्वासन आदि।

मनु का योगदान (Bhartiya Rajniti Mein Mannu ka yogdan)

भारतीय राजनीतिक चिन्तन में मनु का योगदान महत्त्वपूर्ण है। उन्होंने राजनीतिक चिन्तन की व्यवस्थित व्याख्या प्रस्तुत की। मनु का सबसे बड़ा योगदान यह है कि वे पहिले विचारक थे जिन्होंने अराजक समाज का अन्त कर उसके स्थान पर राज्य की स्थापना का समर्थन किया तथा उसे आधार प्रदान किया। मनु ने राज्य की उत्पत्ति के दैवीय सिद्धान्त की स्थापना की तथापि राजा को असीमित और अपरिमित अधिकार नहीं दिए।

मनु का राजा, धर्म और सदाचार के नियमों के अधीन है। वह राज्य में मनमानी नहीं कर सकता। मनु का राजनीतिक चिन्तन उसके समाज-दर्शन का एक भाग है। मनु व्यक्ति को केवल राजनीतिक प्राणी मात्र नहीं मानते, वे व्यक्ति को समग्र रूप में देखते हैं। राजनीति उनके चिन्तन का एक भाग है। उन्होंने मानव मात्र के कर्त्तव्यों पर जोर दिया तथा प्रत्येक व्यक्ति के स्वधर्म पालन का समर्थन किया। मनु के राजनीतिक आदर्श काल्पनिक नहीं हैं, अपितु वे यथार्थ और व्यावहारिक हैं। मनु विधि प्रणेता हैं।

विश्व में ज्ञात विधिशास्त्रियों में मनु का स्थान सर्वोपरि और सर्वप्रथम है। उन्होंने मानव जीवन के नियमों की व्यवस्थित संहिता प्रस्तुत की। इतनी वैज्ञानिक और शाश्वत व्यवस्था किसी अन्य विचारक ने प्रस्तुत नहीं की है। भारत के प्रत्येक-भाग में प्रचलित दण्ड के नियम और न्याय व्यवस्था मनु की देन है। मनु की न्याय व्यवस्था में हिंसक आचरण से उत्पन्न विवादों और धन सम्बंधी विवादों का स्पष्ट उल्लेख है।

पुलिस व्यवस्था (Manu Ke anusar police Kanoon vyavastha)

मनु ने पुलिस व्यवस्था, संंप्रभुता, बाजारों का गठन और उनका संचालन, गाँव और पुर का संगठन, सेना के कार्य, पराजित राजा के प्रति विजेता राजा का व्यवहार आदि विषयों पर भी विचार किया है। मनु ने ‘प्रजा रक्षण’ के सिद्धान्त और अधिक कर न लेने के सिद्धान्त का विस्तार। से वर्णन किया है।

वे पूर्व में ही इस मान्यता की स्थापना कर गए कि राजा को न्यायोचित तरीके से जनता से कर वसूल करना चाहिए। मनु ने केवल राज्य और राजा का ही विचार नहीं किया, अपितु परराष्ट्र सम्बन्ध के संदर्भ में भी विस्तार से विचार किया है। इसके लिए उन्होंने ‘मण्डल सिद्धान्त’ और ‘षड्गुण सिद्धान्त’ की चर्चा की है। उन्होंने युद्ध नीति के सम्बन्ध में भी नीतिगत मान्यताएँ स्थापित कीं। मनु का चिन्तन वास्तव में स्पष्ट, सुव्यवस्थित और व्यापक चिन्तन है।

निष्कर्ष:

ऊपर दिए गए लेख के अनुसार आपने Manu Ke Anusar कानून और न्याय व्यवस्था, मनु का योगदान के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी पढ़ी। आशा है आपको ऊपर दी गई जानकारी जरूर अच्छी लगी होगी। पढ़ने के लिए धन्यवाद,

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मनु क्या है किसे कहते हैं? मनुस्मृति के बारे में

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