Happy Festival 2022 आपका इस आर्टिकल में स्वागत है। आर्टिकल के अंतर्गत आप जानेंगे गोवत्स द्वादशी (Govatsa Dwadashi) एवं रंभा एकादशी व्रत कथा व तिथि के बारे में जानेंगे। आप इसे पूरा पढ़ें, इसमें आपको दोनों फेस्टिवल की कथा और date के बारे में जानेंगे तो चलिए शुरू करते हैं।
Rambha Ekadashi Vrat: (रम्भा एकादशी व्रत)
यह व्रत कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को रखा जाता है। इस दिन भगवान कृष्ण का सम्पूर्ण वस्तुओं से पूजन, नैवेद्य तथा आरती कर प्रसाद वितरित करके ब्राह्मणों को भोजन करायें तथा दक्षिणा दें।
Rambha ekadashi vrat katha: (रम्भा एकादशी कथा)
पुराने समय में मुचकुन्द नाम का दानी, धर्मात्मा राजा था। वह प्रत्येक एकादशी का व्रत (ekadashi vrat) करता था। राज्य की प्रजा भी उसके देखा देखी प्रत्येक एकादशी का व्रत रखने लगी थी। राजा के चन्द्रभागा नाम की एक पुत्री थी। वह भी एकादशी का व्रत करती थी।
उसका विवाह राजा चन्द्रसेन के पुत्र शोभन के साथ हुआ। शोभन राजा के साथ ही रहता था। इसलिए वह भी एकादशी का व्रत (ekadashi vrat) करने लगा। कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को शोभन ने एकादशी का व्रत रखा परन्तु भूख से व्याकुल होकर मृत्यु को प्राप्त हो गया। इससे राजा, रानी और पुत्री बहुत दुःखी हुए परन्तु एकादशी का व्रत करते रहे।
शोभन को व्रत के प्रभाव से मन्दराचल पर्वत पर स्थित देव नगर में आवास मिला। वहाँ उसकी सेवा में रम्भादि अप्सराएँ तत्पर थीं। अचानक एक दिन मुचुकुन्द मन्दराचल पर्वत पर गये तो वहाँ पर उन्होंने शोभन को देखा। घर आकर उन्होंने सब वृतान्त रानी एवं पुत्री को बताया। पुत्री यह समाचार पाकर पति के पास चली गई तथा दोनों सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करने लगे। उनकी सेवा में रम्भादि अप्सराएँ लगीं रहती थीं। इसलिए इस एकादशी को रम्भा एकादशी (Rambha ekadashi) कहते हैं।
Govatsa Dwadashi Vrat: (गोवत्स द्वादशी व्रत)
कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की Govatsa Dwadashi (गाय बछड़ा) के रूप में मनाई जाती है। इस दिन गाय बछड़े को पूजने का विधान है। पूजने के बाद उन्हें गेहूँ से बने पदार्थ खाने को देने चाहिए। इस दिन गाय का दूध व गेहूँ के बने पदार्थों का प्रयोग वर्जित है। कटे फल का सेवन नहीं करना चाहिए। गोवत्स की कहानी सुनकर ब्राह्मणों को फल देने चाहिए।
govatsa dwadashi katha: (गोवत्स द्वादशी कथा)
बहुत समय हुए सुवर्णपुर नगर में देवदानी राजा का राज्य था। राजा के सीता और गीता दो रानियाँ थी। राजा ने एक भैंस तथा एक बछड़ा पाल रखा था। सीता भैंस की देखभाल करती थी तथा गीता गाय बछड़े की देखभाल करती थी। गीता बछड़े पर पुत्र के समान रस बरसाती थी।
एक दिन भैंस ने चुगली कर दी कि गीता रानी मुझसे ईर्ष्या करती है। ऐसा सुनकर सीता ने गाय के बछड़े को मारकर गेहूँ के ढेर में छुपा दिया। राजा जब भोजन करने बैठा तब माँस की वर्षा होने लगी। महल के अन्दर चारों ओर रक्त और माँस दिखाई देने लगा। भोजन की थाली में मल-मूत्र हो गया। राजा की समझ में कुछ नहीं आया।
तभी आकाशवाणी हुई कि हे राजन! तुम्हारी रानी सीता ने गाय के बछड़े को मारकर गेहूँ के ढेर में छिपा दिया है। कल गोवत्स द्वादशी (govatsa dwadashi) है। तुम भैंस को राज्य से बाहर करके गोवत्स की पूजा करो। तुम्हारे तप से बछड़ा जिन्दा हो जायेगा। राजा ने ऐसा की किया।
जैसे ही राजा ने मन से बछड़े को याद किया वैसे ही बछड़ा गेहूँ के ढेर से निकल आया। यह देख राजा प्रसन्न हो गया। उसी समय से राजा ने अपने राज्य में आदेश दिया कि सभी लोग गोवत्स द्वादशी का व्रत (Govatsa Dwadashi Vrat) करें।
रम्भा एकादशी और Govatsa Dwadashi व्रत तिथि 2022:
गोवत्स द्वादशी (govatsa dwadashi) एवं रंभा एकादशी व्रत 21 / 10 / 2022 दिन शुक्रवार को कार्तिक कृष्ण 11 को है। आप शुक्रवार के दिन 21 अक्टूबर 2022 को मना सकते हैं।