Amla Navami | आँवला नवमी व्रत कथा और महत्त्व के बारे में जाने

आंवला नवमी (Amla Navami) कब और क्यों मनाते हैं? आवरी के पौधा को क्यों लोग पूजते हैं। इस पर्व मनाने का मुख्य रीजन क्या है? (व्रत कथा) AmlaNavami katha इस आर्टिकल के माध्यम से आप पढ़ने वाले हैं। तो चलिए जानते हैं Amla Navami व्रत कथा वह महत्त्व,

Amla Navami vart
Amla Navami vart

Amla Navami Vart: कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को “आँवला नवमी (Amla Navami)” कहते हैं। जैसे नाम से पता चलता है कि इस दिन आँवला वृक्ष (Amla Podha) की पूजा की जाती है। विधानः प्रातः स्नान करके शुद्ध आत्मा से आँवले के वृक्ष के नीचे पूर्व दिशा में बैठकर Pujan करना चाहिए। पूजन के बाद उसकी जड़ में दूध देना चाहिए। इसके बाद पेड़ के चारों ओर कच्चा धागा बाँधना चाहिए। कपूर बाती या शुद्ध घी की बाती से Aarti करते हुए सात बार परिक्रमा करनी चाहिए। इसके बाद पेड़ के नीचे ब्राह्मण को Bhojan कराकर दान दक्षिणा देनी चाहिए।

Amla Navami पहली कथा:

Kashi city में एक निःसन्तान धर्मात्मा तथा दानी वैश्य रहता था। एक दिन वैश्य की Wife से एक पड़ोसन बोली यदि तुम किसी पराये लड़के की बलि भैरव के नाम से चढ़ा दो तो तुम्हें पुत्र प्राप्त हो सकता है।

यह बात जब वैश्य को पता चली तो उसने अस्वीकार कर दिया। परन्तु उसकी wife मौके की तलाश में लगी रही। एक दिन एक कन्या को उसने कुएँ में गिराकर भैरों देवता के नाम पर बलि दे दी। इस हत्या का परिणाम विपरीत हुआ। benefit की जगह उसके बदन में कोढ़ हो गया। लड़की की प्रेतात्मा उसे सताने लगी।

वैश्य के पूछने पर उसकी पत्नी (Wife) ने सारी बात बता दी। इस पर वैश्य कहने लगा गौवध, ब्राह्मणवध तथा बालवध करने वाले के लिए इस संसार में कहीं जगह नहीं है। इसलिए तू गंगातट पर जाकर Bhagvaan का भजन कर तथा गंगा में स्नान कर तभी तू इस कष्ट से छुटकारा पा सकती है।

वैश्य पत्नी Ganga किनारे रहने लगी। कुछ दिन बाद Ganga Maa वृद्धा का वेष धारण कर उसके पास आयी और बोली तू मथुरा जाकर कार्तिक नवती का व्रत तथा आँवला वृक्ष की परिक्रमा कर तथा उसका Pujan कर। यह व्रत करने से तेरा यह कोढ़ दूर हो जायेगा। वृद्धा की बात मानकर वैश्य पति से आज्ञा लेकर मथुरा जाकर विधिपूर्वक आँवला का व्रत करने लगी। ऐसा करने से वह God की कृपा से दिव्य शरीर वाली हो गई तथा उसे पुत्र प्राप्ति भी हुई।

आँवला नवमी दूसरी व्रत कथा (Amla Navami katha)

एक सेठ आमला नौमी के दिन आँवले (Amle) के पेड़ के नीचे ब्राह्मणों को भोजन कराया करता था। सोने का दान किया करता था। उसके बेटों को यह सब अच्छा नहीं लगता था। घर की कलह से तंग आकर वह घर छोड़कर दूसरे village में चला गया। उसने वहाँ जीवन यापन के लिए एक दुकान कर ली। उसने दुकान के आगे एक आँवले का पेड़ा लगाया। उसकी दुकान खूब चलने लगी। वह यहाँ भी Amla Navami का व्रत करने लगा तथा ब्राह्मणों को भोजन तथा दान का कार्यक्रम चालू रखा।

बेटों का कार्य ठप्प हो गया। उनकी समझ में यह बात आ गई कि हम तो पिताश्री के भाग्य से ही रोटी खाते थे। बेटे अपने father के पास गये और अपनी गलती स्वीकार कर ली। पिता की आज्ञानुसार वे भी Amla Navami ko आँवला पेड़ की पूजा करने लगे। यहाँ पहले जैसी खुशहाली हो गई।

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