Tara Bhojan Ki Kahani || जानिएँ तारा भोजन व्रत कथा कब से प्रारंभ है?

हेलो दोस्तों आपका Happy Festival में स्वागत है। दोस्तों इस आर्टिकल के माध्यम से हम बताने वाले हैं Tara Bhojan Ki Kahani तारा भोजन के बारे में यह क्यों मनाया जाता है? कब मनाया जाता है? इस त्यौहार का महत्त्व क्या होता है? आदि तमाम जानकारी आप इस आर्टिकल में Tara Bhojan Ki Kahani पढ़ने वाले हैं। तो चलिए स्टार्ट करते हैं।

Tara Bhojan Ki Kahani
Tara Bhojan Ki Kahani

Tara Bhojan Ki Kahani

तारा भोजन की कहानी इस क्रम में हम जानते हैं। दोस्तों ऐसा कहा जाता है कि किसी नगर में एक सेठ साहूकार रहते थे उनकी एक बहू तारा भोजन (Tara bhojan) करवाती थी। एक दिन वह अपनी सास से कहानी सुनने में कहा तो सास ने मना कर दिया। मुझे अभी पूजा करनी है, अभी टाइम नहीं है।

फिर वह अपनी जेठानी से कहने लगे कि आप मेरी कहानी सुन लो, उसने भी मना किया और कहा अभी मुझे खाना बनाना है। फिर उसके बाद उसने अपनी देवरानी से भी कहा कि आप तारा भोजन की कहानी सुन लो, तब उसने भी बहाना बना दिया और कहा कि मुझे अपने बच्चों और परिवार के काम निपटाने हैं। उसके बाद ननंद को कहानी सुनाने के लिए उसने कहा, तब उसने भी मना कर दिया कि मुझे अभी टाइम नहीं है। मुझे ससुराल जाना है और जाने कि मुझे तैयारी करनी है।

वह बहु राजा के पास गई कि आप मेरी कहानी सुन लो, तो राजा ने कहा मुझे अपना राजकाज देखना है कहानी सुनने का समय नहीं है। उसकी या मनोदशा देखकर भगवान उसके लिए स्वर्ग से विमान भेजते हैं और स्वर्ग से विमान आया। देख उसकी सास भी भागकर जाने के लिए आती हैं, लेकिन बहू मना कर देती है आपको तो पूजा करनी है।

तारा भोजन की कहानी (Tara bhojan ki kahani)

फिर जेठानी आती है तो वह भी कहती है। कैसे चलेगी? आपको तो खाना बनाना है। देवरानी आती है तब उसको भी मना कर देती है कि तुम अपने बच्चों का ख्याल रखो। उसके बाद ननंद आती है तो वह भी कहती आप अपनी ससुराल जाने की तैयारी करो।

राजाजी आते हैं मैं चलता हूँ तुम्हारे साथ लेकिन बहू कहती है तुम्हें अपने राज काज देखने का समय है। उसके पड़ोसन आती हो कहती है बहन मैं तुम्हारे साथ चलूं तब वह कहती हैं हाँ तुम मेरे साथ चलो। क्योंकि तुम तो हो जिसने कार्तिक के पूरे माह मेरी कहानी सुनी।

दोनों विमान में बैठकर स्वर्ग की तरफ जाने लगते हैं। तभी रास्ते में बहू को अभिमान हो जाता है कि मैं कार्तिक की पूर्णिमा व्रत किया। कहानी कही इसलिए मुझे स्वर्गवास मिल गया। लेकिन मेरी पड़ोसन ने तो कहानी केवल सुनी है व्रत नहीं किया है फिर वह मेरी वजह से मेरे स्वर्गवास मिल गया है।

तारा भोजन की कहानी

बहु यह विचार मन में सोचती जा रही थी कि अचानक भगवान ने वहीं से उस विमान को नीचे फेंक दिया और बहू ने भगवान से पूछा-पूछा कि भगवान मेरा अपराध तो बता दीजिए कि आपने ऐसा क्यों किया? भगवान बोले देखो तुम्हें अभिमान हो गया है।

तुम्हें अभिमान हो गया है इसलिए तुम धरती पर रहो अब तुम आने वाले 3 साल तक तारा व्रत करना तभी तो मैं स्वर्ग की प्राप्ति होगी। इस प्रकार से दोस्तों ऐसे बहुत से रोचक कहानियाँ तारा व्रत (Tara Bhojan Ki Kahani) के बारे में कहीं जाती हैं।

निष्कर्ष:

दोस्तों कार्तिक मास के प्रारंभ से लेकर पूर्ण माह तक व्रत करते हैं। प्रतिदिन रात्रि को तारा को अर्घ्य देकर भोजन करते हैं। व्रत के अंतिम दिन उपवास करते हैं। उजमन में 5 सीधे सुराही ब्राह्मण को देते हैं। तथा एक साड़ी ब्लाउज पर रुपया रखकर सास के पैर स्पर्श करके देना चाहिए. इस प्रकार से तारा व्रत के बारे में यह जानकारी आपको जरूर अच्छी लगी होगी। धन्यवाद।

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